लखनवी अंदाज Summary Class 10 हिंदी:दोस्तों जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारी विद्यालय की पुस्तकों में जो पाठ दिए रहते हैं, वे बहुत ही लम्बे दिए रहते हैं और उसमें काफी कठिन भाषा का प्रयोग होता है इसलिए ये पाठ हर किसी के समझ में जल्दी नहीं आता इसलिए इस आर्टिकल में , मैं आपको बालगोबिन लखनवी अंदाज पाठ का हिंदी में सारांश बताने वाला हूं तो चलिए लेख को शुरू करते हैं।
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लखनवी अंदाज Summary class 10 Hindi |
लखनवी अंदाज़ summary
सारांश और प्रष्ठभूमि:- लखनवी अंदाज कहानी की शुरुआत कुछ इस तरह होती है। लेखक को अपने घर से थोड़ी दूर कहीं जाना था। लेखक ने भीड़ से बचने, एकांत में किसी नई कहानी के बारे में सोचने व ट्रेन की खिड़की से बाहर के प्राकृतिक दृश्यों को निहारने के लिए लोकल ट्रेन (मुफस्सिल) के सेकंड क्लास का कुछ महंगा टिकट खरीद लिया। जब वो स्टेशन पहुंचे तो गाड़ी छूटने ही वाली थी। इसीलिए वो सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को • चढ़ वहां खाली समझकर उसमें चढ़ गए लेकिन जिस डिब्बे को वो खाली समझकर चढ़े थे, पहले से ही एक लखनवी नवाब बहुत आराम से पालथी मारकर बैठे हुए थे और उनके सामने दो ताजे खीरे एक तौलिए के ऊपर रखे हुए थे।
लेखक को देख नवाब साहब बिल्कुल भी खुश नही हुए क्योंकि उन्हें अपना एकांत भंग होता हुआ दिखाई दिया। उन्होंने लेखक से बात करने में भी कोई उत्साह या रूचि नहीं दिखाई । लेखक उनके सामने वाली सीट में बैठ गए। लेखक खाली बैठे थे और कल्पनायें करने की उनकी पुरानी आदत थी। इसलिए वो उनके आने से नवाब साहब को होने वाली असुविधा का अनुमान लगाने लगे। वो सोच रहे थे शायद नवाब साहब ने अकेले सुकून से यात्रा करने की इच्छा से सेकंड क्लास का टिकट ले लिया होगा । लेकिन अब उनको यह देखकर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है कि शहर का कोई सफेदपोश व्यक्ति उन्हें सेकंड क्लास में सफर करते देखें। उन्होंने अकेले सफर में वक्त अच्छे से कट जाए यही सोचकर दो खीरे खरीदे होंगे। परंतु अब किसी सफेदपोश आदमी के सामने खीरा कैसे खाएं।
नवाब साहब गाड़ी की खिड़की से लगातार बाहर देख रहे थे और लेखक कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे। अचानक नवाब साहब ने लेखक से खीरा खाने के लिए। पूछा लेकिन लेखक ने नवाब साहब को शुक्रिया कहते हुए मना कर दिया। उसके बाद नवाब साहब ने बहुत ही तरीके से खीरों को धोया और उसे छोटे-छोटे टुकड़ों (फॉक) में काटा। फिर उसमें जीरा लगा नमक, मिर्च लगा कर उनको तौलिये में करीने से सजाया। इसके बाद नवा साहब ने एक और बार लेखक से खीरे खाने के बारे में पूछा। क्योंकि लेखक पहले ही खीरा खाने से मना कर चुके थे इसीलिए उन्होंने अपना आत्म सम्मान बनाए रखने के लिए इस बार पेट खराब होने का बहाना बनाकर खीरा खाने से मना कर दिया।
लेखक के मना करने के बाद नवाब साहब ने नमक मिर्ची लगे उन खीरे के टुकड़ों को देखा। फिर खिड़की के बाहर देख कर एक गहरी सांस ली। उसके बाद नवाब साहब खीरे की एक फाँक (टुकड़े) को उठाकर होठों तक ले गए, फाँक को सूंघा । स्वाद के आनंद में नवाब साह की पलकें मूँद गई । मुंह में भर आए पानी का घूंट गले में उतर गया। उसके बाद नवाब साहब ने खीरे के उस टुकड़े को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इसी प्रकार नवाब साहब खीरे के हर टुकड़े को होठों के पास ले जाते, फिर उसको सूंघते और उसके बाद उसे खिड़की से बाहर फेंक देते। खीरे के सारे टुकड़ों को बाहर फेंकने के बाद उन्होंने आराम से तौलिए से हाथ और होंठों को पोछा । और फिर बड़े गर्व से लेखक की तरफ देखा । जैसे लेखक को कहना चाह रहे हो कि “यही है खानदानी रईसों का तरीका " ।
नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थक कर लेट गए। लेखक ने सोचा कि "क्या सिर्फ खीरे को सूंघकर ही पेट भरा जा सकता है"। तभी नवाब साहब ने एक जोरदार डकार ली और बोले “खीरा लजीज होता है पर पेट पर बोझ डाल देता है"। यह सुनकर लेखक के ज्ञान चक्षु खुल गए। उन्होंने सोचा कि जब खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से ही पेट भरकर डकार आ सकती है, तो बिना किसी विचार, घटना, कथावस्तु और पात्रों के, सिर्फ लेखक की इच्छा मात्र से "नई कहानी" भी तो लिखी जा सकती है।