बालगोबिन भगत Summary Class 10 हिंदी। Balgobin bhagat Summary Hindi

बालगोबिन भगत Summary Class 10 हिंदी:दोस्तों जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारी विद्यालय की पुस्तकों में जो पाठ दिए रहते हैं, वे बहुत ही लम्बे दिए रहते हैं और उसमें काफी कठिन भाषा का प्रयोग होता है इसलिए ये पाठ हर किसी के समझ में जल्दी नहीं आता  इसलिए इस आर्टिकल में , मैं आपको बालगोबिन भगत पाठ का हिंदी में  सारांश बताने वाला हूं तो चलिए लेख को शुरू करते हैं

Balgobin bhagat Summary Class 10 hindi

पाठ:- बालगोबिन भगत

विधाः- रेखाचित्र

लेखक:- रामवृक्ष बेनीपुरी


लेखक परिचय- रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म सन् 1899 में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गांव में हुआ। दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे सन् 1920 में राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ गए। उनका देहावसान सन् 1968 में हुआ।

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साहित्यिक परिचय- 15 वर्ष की आयु में ही रामवृक्ष बेनीपुरी की रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगीं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं तरुण भारत, किसान मित्र, जनवाणी, योगी, युवक आदि का संपादन किया। उनका पूरा साहित्य बेनीपुरी रचनावली के आठ खंडों में प्रकाशित है। विशिष्ट शैलीकार होने के कारण उन्हें कलम का जादूगर कहा जाता है।


प्रमुख रचनाएं-

•पतितों के देश में (उपन्यास)

•चिता के फूल (कहानी)

•अंबपाली (नाटक)

•माटी की मूरतें (रेखाचित्र)

•पैरों में पंख बांधकर (यात्रा वृतांत)

बालगोबिन भगत Summary Class 10

पाठ का सार

बालगोबिन भगत मध्यम कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। उनकी उम्र 60 वर्ष से ऊपर और बाल पक चुके थे। वह लंबी दाढ़ी नहीं रखते थे और बिलकुल कम कपड़े पहनते थे। कमर में लंगोटी और सिर पर कबीरपंथियों जैसी कनपटी टोपी। सर्दियों में ऊपर से काला कंबल ओढ़ लेते। वह गृहस्थ होते हुए भी सच्चे साधु थे। उनके माथे पर सदैव रामानंदी चंदन का टीका
और गले में तुलसी की जड़ों की बेडौल माला बंधी रहती। 

उनका एक बेटा और पतोहू थी। वे कबीरदास जी को साहब मानते थे। कभी किसी दूसरे की चीज़ नहीं छूते और न ही बेवजह झगड़ा करते। वे खेती-बाड़ी करते थे और जो भी उपज होती उसे सिर पर लादकर कबीरपंथी मठ ले जाते। प्रसाद रूप में उन्हें जो भी मिलता उससे गुजर-बसर करते थे। बड़ी मधुरता से वह कबीर के पदों को गाते थे। आसाढ़ के समय जब सारा गांव खेतों में काम कर रहा होता तब बालगोबिन भगत खेत में रोपनी करते हुए मधुर गीतों को गाते। भादों की अंधेरी रात में उनकी खंजड़ी बजती थी। 

जब सारा संसार सोया होता तब उनका संगीत जागता था। कार्तिक मास में उनकी प्रभातियां शुरू होकर फागुन तक चलती थी। वे सुबह नदी में स्नान करने जाते और लौटकर पोखर के ऊंचे भिंडे पर अपनी खंजड़ी लेकर बैठ जाते और गाना शुरू कर देते थे। गर्मियों में अपने घर के आंगन में संगीत बैठक करते। उनका संगीत उमस भरी शाम को भी शीतल कर देता था। उनकी संगीत साधना का चरम उत्कर्ष तब देखा गया जिस दिन उनके इकलौते बेटे की मृत्यु हुई।

 उनका बेटा कुछ सुस्त और बुद्ध सा था। जिस कारण भगत जी उसे और भी अधिक मानते थे। उनके विचार से ऐसे मनुष्य निगरानी और प्रेम के अधिक हकदार होते हैं। बड़े चाव से उन्होंने अपने पुत्र की शादी कराई थी। बेटे की पत्नी सुंदर और सुशील थी। उसने घर की पूरी जिम्मेदारी संभाल कर भगतजी को दुनियादारी से मुक्त कर दिया था। जब लेखक को भगतजी के बेटे की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ तो वह उनके घर गए। वहाँ का दृश्य देखकर लेखक को बड़ा आश्चर्य हुआ। मृत बेटे को आंगन में चटाई पर लिटाकर सफेद कपड़े से ढक रखा था। उस पर कुछ फूल बिखेर दिए थे। 

भगत सामने जमीन पर आसन जमा कर गीत गा रहे थे और बहू को रोने के बजाय उत्सव मनाने को कह रहे थे। उनका मानना था कि आत्मा का परमात्मा के पास चले जाना आनंद की बात है। अपने बेटे की चिता को आग भी उन्होंने बहू से दिलवाई। श्राद्ध की अवधि पूरी हुई तो उसके भाई को बुला कर दूसरा विवाह करने का आदेश दिया। भगत जी की बहू नहीं जाना चाहती थी। वह उनकी सेवा करना चाहती थी। लेकिन भगत जी नहीं माने।

भगत जी ने कहा कि अगर वह नहीं गई तो वह स्वयं घर छोड़कर चले जाएंगे। भगत जी की मृत्यु उनके अनुसार हुई। वे हर वर्ष तीस कोस पैदल चलकर गंगा स्नान करने जाते थे। घर से खाकर चलते थे तथा वापस आ कर खाते थे। बाकी समय उपवास रहता। किंतु अब उनका शरीर बूढ़ा हो चुका था। इस बार घर लौटे तो तबीयत खराब थी किंतु वह नियम छोड़ने वालों में से नहीं थे। लोगों के मना करने पर भी वह पुरानी दिनचर्या पर चलते रहे। एक दिन शाम को उन्होंने गीत गाया परंतु अगली सुबह किसी ने उनका गीत नहीं सुना। जब वहां जाकर देखा तो पता चला कि बालगोबिन भगत नहीं रहे।

निश्कर्ष

दोस्तों इस आर्टिकल में हमने  बालगोबिन भगत पाठ का हिंदी  में सारांश जाना जो कक्षा  10 का पाठ 2 है हिंदी का।

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